राज्यसभा और लोकसभा, भारतीय संविधान के दो प्रमुख संसदीय संस्थान हैं जो देश के लोकतंत्र
में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये दोनों संसदीय संस्थानों का अहम अंग हैं जो भारतीय
राजनीति और प्रशासन में गहरा प्रभाव डालते हैं।
उद्देश्य:
राज्यसभा का मुख्य उद्देश्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों को मिलाकर एक मंच प्रदान करना है ताकि वहाँ राज्यों की बातें सुनी जा सकें और उनकी मुद्दों पर विचार किया जा सके।
सदस्य:
राज्यसभा के सदस्यों को राज्यों के विधान परिषदों द्वारा चुना जाता है। इसमें भारतीय संविधान के अनुसार निर्धारित संख्या में सदस्य होते हैं।
संख्या:
राज्यसभा में कुल 245 सदस्य होते हैं। इनमें 233 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों के रूप में चुने जाते हैं और बाकी 12 सदस्य प्रमुख शख्सियतों के निर्वाचन द्वारा नामित होते हैं।
कार्यक्षेत्र:
राज्यसभा का कार्यक्षेत्र राज्यों के मुद्दों और केंद्र शासित प्रदेशों की प्रतिनिधित्व करना है। इसमें विधान का संशोधन, केंद्रीय सरकार के महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार, नगरीय और ग्रामीण विकास की योजनाओं पर विचार, आदि शामिल है।
अधिकार:
राज्यसभा के सदस्यों का अधिकार केंद्रीय सरकार के प्रस्तावित कानूनों को संशोधित करने और उन पर विचार करने का है। वे केंद्रीय सरकार की नीतियों और योजनाओं पर टिप्पणी कर सकते हैं।
लोकसभा:
उद्देश्य:
लोकसभा का मुख्य उद्देश्य जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार का निर्वाचन करना है। यहाँ प्रतिनिधित्व के अधिकार जनता को स्वतंत्रता का एहसास दिलाने का भी है।
सदस्य:
लोकसभा में कुल 545 सदस्य होते हैं, जिन्हें लोकसभा चुनावों के माध्यम से चुना जाता है।
कार्यक्षेत्र:
लोकसभा का कार्यक्षेत्र देश के संविधानिक और प्रशासनिक मामलों को समाधान करना है। यहाँ पर नए कानूनों को
प्रस्तुत किया, पारित किया, और उनकी पारिश्रमिक की जाती है।
अधिकार:
लोकसभा के सदस्यों का अधिकार नई कानूनों को पारित करना, सरकार के कार्यों को निगरानी करना, बजट पारित करना, और सरकार को जवाबदेही में लेना है।
इस प्रकार, राज्यसभा और लोकसभा दोनों ही अहम संसदीय संस्थान हैं जो भारतीय लोकतंत्र के लिए
अभिन्न हैं और सरकार के सुशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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